
अनुभव सिन्हा द्वारा निर्मित एवं उनके निर्देशन में बनी तथा राजकुमार राव, भूमि पेडणेकर, आसुतोष राणा, पंकज कपूर, दिया मिर्जा, वीरेंद्र सक्सेना एवं आदित्य श्रीवास्तव अभिनीत फिल्म “भीड़” रिलीज हो चुकी है. फिल्म कोविड काल में सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन की त्रासदी व मजदूरों की हालात पर बेस्ड है. इस दौरान अनुभव सिन्हा ने कई और मुद्दों जैसे जाति और धर्म को भी थोड़ा सा छुआ, जो कोरोना के भयंकर त्रासदी में भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहे थे. फिल्म ‘भीड़’ कोरोना के दौरान लगे लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन, व्यवस्था की खामियों और उसमें शामिल तमाम उन समस्याओं की बात करती है, जिसे हाल ही में देश के लोगों ने झेला और सबसे ज्यादा अगर कोई प्रभावित रहा तो वह था विभिन्न प्रदेशों से मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में मजदूरी कर घर परिवार चलाने के लिए बाहर गया मजदूर.
कहानीः फिल्म की शुरुआत प्रधानमंत्री द्वारा देश में घोषित किए संपूर्ण लॉकडाउन और महानगरों से अपने घर को पैदल जाते मजदूरों के बेचारगी से शुरू होती है. वैसे तो उस दौरान देश में न जाने कितने बॉर्डर, चेकपोस्ट बना दिए गए थे, उनकी गिनती भी अब मुश्किल है, लेकिन अनुभव सिन्हा ने एक चेकपोस्ट तेजपुर को फिल्म में दिखाया है. जहां के सुपीरियर अधिकारी यादवजी (आसुतोष राणा) हैं. इंस्पेक्टर सूर्य कुमार सिंह तिकस (राजकुमार राव) हैं. लॉकडाउन लगते ही यहां एक चेकपोस्ट बनाया जाता है जिसकी जिम्मेदारी सूर्यकुमार सिंह तिकस को सौंपी जाती है, जो कथित छोटी जाति से संबंध रखते हैं जबकि उनकी गर्लफ्रेंड रेनु शर्मा (भूमि पेडणेकर) हैं, जो कि कथित ऊंची जाति की होती हैं. वह डॉक्टर हैं. चेकपोस्ट पर मजदूरों एवं कहीं न कहीं जा रहे लोगों का जमावड़ा लगने लगता है, जिसे व्यवस्थित करने के लिए पुलिस लगा दिए जाते हैं. जबकि बसों, गाडियों एवं पैदल यात्री वहां से निकलने के लिए आते हैं लेकिन चेकपोस्ट होने के नाते अटक जाते हैं. पत्रकारों की टीम, साईकिल से अपने पिता को ले जाने वाली लड़की, सीमेंट मिलाने वाली मशीन में बैठकर घर जा रहे मजदूर, लाइन में बिठाकर मजदूरों का सेनीटाइजेशन, अपनी बेटी को हॉस्टल से लेने जा रही एक महिला एवं एक बस में कुछ मुस्लिमों का होना तथा तबलीकी जमात वाली खबर मीडिया में सुर्खियां बनना आदि दृश्य फिल्मों में समाहित किए गए हैं, जिसकी असली कहानी देखे अभी ज्यादा समय नहीं हुए हैं. फिल्म और भी बहुत कुछ चीजें हैं, जिन्हें आप फिल्म में ही देखें को बेहतर है. फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट बनाई गई है, लेकिन इसके संवाद और कहानी की कुछ बारीकियों को देखेंगे तो काफी कुछ सोचने को मजबूर हो जाएंगे, इसलिए ऐसी फिल्म बनती रहनी चाहिए और देखी जानी चाहिए. उन्हें देखने के लिए एक बार थिएटर जाएं और जरूर देखें.
अभिनयः ‘भीड़’ में राजकुमार राव, आसुतोष राणा और पंकज कपूर के अभिनय ने फिल्म को नई ऊंचाई दी है. एक्टिंग, डायलॉग डिलीवरी से लेकर हाव-भाव सबकुछ इन कलाकारों ने एक कदम आगे कर दिखाया है. वहीं आदित्य श्रीवास्तव, दिया मिर्जा, वीरेंद्र सक्सेना, कृतिका कमरा, पीपली लाइव फेम ओमकार आदि ने भी अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है.
डायरेक्शनः अनुभव सिन्हा अपनी पिछली फिल्मों के निर्देशन को लेकर पहले ही काफी तारीफें बटोर चुके हैं और अब ‘भीड़’ को लेकर भी उनकी तारीफ बनती है. इस तरह का रिश्क ले पाना हर किसी के वश की बात नहीं है, लेकिन अनुभव सिन्हा ने वह जिगरा दिखाया है. अगर फिल्म के निर्देशन की बात करें तो ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्शकों को बोरियत महसूस करवाए. सबकुछ बड़े सलीके से पेश किया है साथ ही लोकेशन का चुनाव भी बढ़िया है. कुल मिलाकर अनुभव सिन्हा ने बेहद सधा हुआ निर्देशन किया है.
गीत-संगीतः फिल्म को जिस तरह के गीत संगीत की आवश्यकता थी, उसे अनुराग साइकिया ने बखूबी पूरा किया है. चाहे बैकग्राउंड म्युजिक हो या डॉ. सागर द्वारा लिखित ‘चल उड़ चल सुगना गउवां के ओरिया, जहां माटी में सोना हेराइल बा’ बहुत दमदार बन पड़ा है.
कुल मिलाकर अनुभव सिन्हा ने अच्छी फिल्म दी है, जिसे देखा जाना चाहिए. इस फिल्म में बहुत कुछ हटकर दिखेगा, इसलिए सिनेमाघर जाकर एक बार जरूर देखें. . की तरफ से फिल्म को 4 स्टार.
फिल्म रिव्यूः सिर्फ लॉकडाउन की विभीषिका ही नहीं कई और मुद्दों को छूती है ‘भीड़’