संजय मिश्रा की मुख्य भूमिका में बनी फिल्म “गुठली लड्डू” भारत के अछूतों की शिक्षा व इंसानों वाली ज़िंदगी के खिलाफ सीना तानकर खड़े जातिवादी सामंतों के बीच होने वाले संघर्ष की बेहद मार्मिक कहानी है. यूवी फिल्म्स के बैनर तले प्रदीप राघवानी द्वारा निर्मित फिल्म “गुठली लड्डू” का निर्देशन इशरत आर. खान ने किया है, जबकि फिल्म में संजय मिश्रा, सुब्रत दत्ता, कांचन पगारे, संजय सोनू, धनय सेठ, हीत शर्मा, कल्याणी मुले, अर्चना पटेल, सुनीता शिरोले, प्रवीण चंद्रा एवं आरिफ शहडोली आदि कलाकारों ने मुख्य भूमिका निभाई है. फिल्म आज यानी 13 अक्टूबर को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. जिन्हें लगता है कि देश से जाति-पाति ख़त्म हो चुकी है, अब हर कोई समान है, उन्हें यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए तथा उसके बाद भारत के ग्रामीण क्षेत्रों का चुपचाप ईमानदारी से एक सर्वे करना चाहिए. फिल्म में दलितों के सदियों पुराने दर्द को, जो आज भी देश के तमाम ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद है, उसे बड़े ही मार्मिक व सशक्त तरीके से फिल्मी परदे पर पेश किया गया है. फिल्म अब तक एक दर्जन से अधिक अवार्ड अपने नाम कर चुकी है.
कहानी: फिल्म “गुठली लड्डू” एक साफ सफाई करने वाले अछूत परिवार के होनहार बेटे लड्डू (धनय सेठ) की कहानी है, जिसका मन पारम्परिक कार्य गटर, टॉयलेट, कचरा साफ करने में नहीं बल्कि पढ़ाई में लगता है. वह स्कूल की खिड़की पर चोरी – चुपके खड़े होकर काफी चीज़ें सीख जाता है और दिन रात उसी में खोया रहता है. गांव में एक बार गुठली नामक चूरन बेचने की गाडी आती है जिस पर लिखा अपना नाम देखने और नाम लिखना सीखने के लिए काफी दूर तक गाड़ी के पीछे भागते हुए जाता है और उस पर देखकर अपना नाम “गुठली” ज़मीन पर लिखता है. गुठली के पिता मंगरू (सुब्रत सेठ) अपने साथी बुधिया (कांचन पगारे) के साथ ठेकेदार के मातहत टॉयलेट एवं गटर की सफाई का काम करते हैं और बुधिया का बेटा लड्डू (हीत शर्मा) गुठली का दोस्त लड्डू है.
लड्डू स्कूल जाना चाहता है लेकिन उसकी जाति की वजह से गांव के पास चल रहे सरस्वती विद्या मंदिर में उसे एडमिशन नहीं मिल पाता. उसे स्कूल के आस पास फटकने की भी मनाई है. वह स्कूल के हेडमास्टर हरिशंकर (संजय मिश्रा) को इसके लिए काफी परेशान भी करता है, लेकिन उसे स्कूल में दाखिला देना उनके वश में नहीं है, क्योंकि स्कूल का प्रबंधक स्थानीय सवर्ण नेता चौबे (आरिफ शहडोली) नहीं चाहता कि स्कूल में कोई अछूत पढ़े. स्कूल के वार्षिक कार्यक्रम को देखने के लिए गुठली चोरी से जाता है और गलती से स्टेज पर पहुँच जाता है तथा अनजाने में अपनी भावनाएं व्यक्त कर देता है. स्टेज से उतरने के बाद स्कूल के तमाम बच्चे मिलकर उसे खूब पीटते हैं और वह रोते हुए अपने घर चला जाता है.
गुठली की प्रतिभा और भावनाओं को देखकर हेडमास्टर चौबे के मन में रहता है कि यह बच्चा पढ़े तो काफी आगे निकल सकता है लेकिन जाति की खाई और स्कूल प्रबंधन व बाकी लोगों के विरोध के सामने वह कुछ नहीं कर पाते. हाँ उन्हें एक तरकीब सूझती है और गुठली के पिता को एक दिन समझाने की कोशिश करते हैं.
इससे पहले मंगरु एक दिन ब्लॉक में जाता है, जहाँ वह छोटी जाति के एक अधिकारी से मिलता है, जो उसे सवर्ण जाति के चपरासी के हाथ से चाय भी पिलवाते हैं. तभी वह ठान लेता है कि अपने बेटे गुठली को पढ़ाएगा, लेकिन कोई रास्ता नहीं सूझता. यह बात मंगरू अपने साथी बुधिया को बताता है तो बुधिया उसे ऐसा सपना देखने से मना करता है और कहता है, हम लोगों को अपने बेटों को अपने साथ काम पर लगा लेना चाहिए ताकि सीख जाएं और आगे चलकर अपनी जीविका चला सकें.
इस बीच बुधिया का बेटा साफ सफाई के काम में अपने पिता का हाथ बंटाने जाने लगता है जबकि गुठली वहीं खेलता रहता रहता है. एक दिन गटर सफाई के दौरान लड्डू गटर में गिर जाता है और उसकी दर्दनाक मौत हो जाती है. सभी बहुत दुखी होते हैं, गुठली भी काफी दुखी होता है. वह अपनी माँ से कहता है – “माँ लड्डू तो मर गया, अब वह दूसरे जन्म में किसी ऊँची जाति वाले के कोख से पैदा होगा तो पढ़ सकता है ना” यह सुन गुठली की मां अपने कलेजे के टुकड़े को गले लगाकर रोने लगती है.
गुठली का पिता मंगरू बहुत कोशिश करता है अपने बेटे का स्कूल में दाखिला के लिए लेकिन कोई फायदा नहीं, हाँ हेडमास्टर चौबे भी इस बारे में सोचते रहते हैं, तभी उन्हें कुछ और तरकीब सूझती है. अब उनकी यह तरकीब कामयाब होती है या नहीं, गुठली गटर सफाई का काम करता है पढ़ाई? गुठली के लिए स्कूल के दरवाज़े खुल पाते हैं या नहीं ? हेड मास्टर चौबे (संजय मिश्रा) का जीवन कैसा है, फिल्म के खट्टे-मीठे-तीखे उतार – चढ़ावों को जानने के लिए एक बार फिल्म “गुठली लड्डू” जरूर देखिये. फिल्म का एक – सीन बड़े सलीके से संजोया गया है.
अभिनय: फिल्म “गुठली लड्डू” में एक-एक कलाकारों ने अपने किरदार को निभाने के लिए खूब मेहनत की है. संजय मिश्रा एक मंजे हुए अभिनेता हैं, हमेशा की तरह “गुठली लड्डू” में हेडमास्टर के किरदार में उन्होंने जान फूंक दी है. बाकी कलाकारों में सुब्रत दत्ता ने मंगरू का बेहतरीन किरदार निभाया है तो बुधिया के किरदार में कांचन पगारे ने जान फूंक दी है. संजय सोनू ने हेडमास्टर के सहायक के किरदार को बड़े ही अच्छे से निभाया है तो गुठली के किरदार में धनय शाह बहुत ही अच्छे लगे हैं. इसी तरह लड्डू के किरदार को हीत शर्मा ने बढ़िया निभाया है तो रनिया यानि गुठली की मां किरदार भी कल्यानी मुले ने ही दमदार किया है. धनिया के किरदार में अर्चना पटेल ने जान डाल दिया है. अध्यापक के किरदार में प्रवीण छेड़ा अच्छे लगे हैं तो चौबे नेता के किरदार को आरिफ शहडोली ने बहुत ही अच्छा किया है.
निर्देशनः “गुठली लड्डू” का निर्देशन इशरत आर. खान ने किया है. अगर कहा जाए कि निर्देशन इस फिल्म सबसे मजबूत पहलू है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. कलाकारों के अच्छे अभिनय के साथ ही फिल्म का कसा हुआ निर्देशन ही इसे अवार्ड विनिंग फिल्म बनाता है. सेट, लोकेशन से लेकर हर एक चीज का चुनाव भी बहुत बढ़िया किया गया है.
लेखक गणेश पंडित ने इसे लिखा भी सलीके से है. बाकी फिल्म की एडिटिंग, एक्शन, म्युजिक सबकुछ बहुत ही अच्छा बन पड़ा है. फिल्म कमर्शियल के लिहाज से भले ही बॉक्स ऑफिस पर वो कमाल न दिखा पाए लेकिन देखने वालों उस दर्द को जरूर महसूस कराएगी, जो सदियों से एक समुदाय सिर्फ इसलिए भुगत रहा है, क्योंकि वह उस जाति में पैदा हुआ है जिसे बाकी लोग छोटी व अछूत मानते हैं.
. की तरफ से फिल्म “गुठली लड्डू” को 4.5 स्टार.