राजकुमार गौतम/बस्ती (उत्तर प्रदेश). जनपद में लोकसभा का चुनाव छठवें चरण में है, तो जाहिर सी बात है चुनावी चर्चा तो रंग पकड़ेगी ही. एक तरफ इस समय चुनावी सारगर्मियां तेज हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ गली, चौराहे, नुक्कड़ और चाय की दुकानों पर भी चर्चाएं आम होने लगी हैं. बस्ती लोकसभा चुनाव हमेशा से ही दिलचस्प रहा है लेकिन इस बार दो बार के बीजेपी सांसद हरीश द्विवेदी की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. यह मुश्किल तबसे और बढ़ गयी हैं, जब से बसपा ने भाजपा के ही बागी दयाशंकर मिश्र को लोकसभा प्रत्याशी घोषित किया है. क्षेत्र वासियों में चर्चाएं आम हैं कि दयाशंकर मिश्र भाजपा के पुराने एवं कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता हुआ करते थे, लेकिन भाजपा के लोग उन्हें बागी के नाम से संबोधित कर रहे हैं. स्थितियां पूर्व में भी हरीश द्विवेदी के अनुकूल नहीं थी. टिकट पाने के पूर्व से ही चर्चा थी कि शायद अबकी बार हरीश द्विवेदी को बस्ती से भाजपा प्रत्याशी न बनाया जाए. यह बात पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी चल रही थी लेकिन हुआ इसके विपरीत और तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी ने उन पर अपना विश्वास जताते हुए मैदान में उतार दिया.
अब तक के राजनीतिक विश्लेषण से यही पता चल रहा है कि दयाशंकर मिश्र यदि हरीश द्विवेदी के संग्रहित मतो को प्रभावित कर ले जाते हैं तो इसका फायदा प्रत्यक्ष रूप से I.N.D.I.A. गठबंधन के प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी को मिलेगा. आज हम चर्चा करेंगे बस्ती लोकसभा के राजनीतिक इतिहास और जातिगत मतदाताओं की.
क्षेत्रफल के लिहाज से बस्ती उत्तर प्रदेश का सातवां सबसे बड़ा जिला है. दलित, ब्राह्मण, क्षत्रिय, कुर्मी और मुस्लिम बहुल इस इलाके में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता निर्णायक माने जाते हैं. हिंदुस्तान में छपे एक आर्टिकल के अनुसार बस्ती जनपद में करीब 5.98 लाख सवर्ण, 6.20 लाख ओबीसी, 4.30 लाख अनुसूचित जाति और 1.83 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. 2019 में कुल मतदाता 18,31,666 थे. इनमें से 990184 पुरुष, 841345 महिलाएं और 137 थर्ड जेंडर मतदाता थे. 2011 की जनगणना के मुताबिक बस्ती की आबादी 24,64,464 है.
बस्ती लोकसभा सीट का इतिहास
देश की आजादी के बाद बस्ती में 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे. उस चुनाव में हर तरफ कांग्रेस ही कांग्रेस थी. कोई अन्य दल मुकाबले में दिखता नहीं था. पहले चुनाव में यहां से उदय शंकर दुबे ने जीत हासिल की थी. 1957 में हुए दूसरे चुनाव में निर्दल उम्मीदवार के तौर पर रामगरीब विजयी रहे. 1957 में ही हुए उपचुनाव और 1962 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा किया. केशव देव मालवीय यहां से विजयी रहे. 1967 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शिवनारायण और 1971 में अनंत प्रसाद धूसिया ने जीत हासिल की. 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर शिवनारायण जीते. 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (इंदिरा) के उम्मीदवार कल्पनाथ सोनकर ने जीत हासिल की. 1984 में भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी राम अवध प्रसाद विजयी रहे. इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर कल्पनाथ सोनकर ने विजयी पाई. रामजन्मभूमि आंदोलन के माहौल में 1991 में पहली बार बीजेपी ने यहां कमल खिलाया. इसके बाद लगातार 1996, 1998 और 1999 में भाजपा उम्मीदवार ही यहां से जीतते रहे. फिर आया 2004 का चुनाव. इस बार बसपा के लालमणि प्रसाद ने इस सीट पर नीला झंडा लहराया. 2009 के चुनाव में भी बसपा ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. इस बार अरविंद कुमार चौधरी यहां से सांसद बने. 2014 में मोदी लहर में एक बार फिर इस सीट पर भगवा परचम लहराया. हरीश द्विवेदी ने जीत हासिल की जिसे 2019 में भी बरकरार रखा. हरीश द्विवेदी वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं. उनके मुकाबले में पिछली बार बसपा से लड़कर दूसरे नंबर पर रहे वरिष्ठ नेता रामप्रसाद चौधरी अब सपा में हैं. सपा ने भी रामप्रसाद चौधरी को राष्ट्रीय सचिव का दायित्व सौंपा है.
दो चुनावों का परिणाम
2014 के लोकसभा चुनाव में बस्ती में कुल 58 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. कुल 10 लाख 38 हजार 366 लोगों ने वोट दिया था. इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हरीश द्विवेदी 3 लाख 57 हजार 680 मत पाकर विजयी रहे थे. समाजवादी पार्टी के बृजकिशोर सिंह डिंपल 3 लाख 24 हजार 118 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे और बसपा के उम्मीदवार रामप्रसाद चौधरी 27 फीसदी वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. 2019 के चुनाव में हरीश द्विवेदी एक बार फिर जीत का सिलसिला कायम रखने में सफल रहे. हरीश द्विवेदी को इस चुनाव में 4,71,162 वोट मिले जबकि 4,40,808 वोट पाकर सपा-बसपा गठबंधन के बसपा उम्मीदवार राम प्रसाद चौधरी दूसरे स्थान पर और कांग्रेस से मैदान में उतरे राज किशोर सिंह 86,920 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
बदले समीकरण में किसकी होगी बाजी
इस बार के बदले समीकरण में फीकी पड़ी मोदी लहर और भाजपा वोटों के बिखराव की स्थिति में जहां भाजपा प्रत्याशी हरीश द्विवेदी की मुश्किलें बढ़ती हुई दिख रही हैं, वहीं इंडिया गठबंधन प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी के साथ बसपा का एकमुश्त वोटर हाथी चुनाव निशान की तरफ ही बढ़ेगा, जबकि बसपा प्रत्याशी को एकमुश्त बसपा का वोट तो मिलेगा ही भाजपा और हरीश द्विवेदी के काम काज से नाराज सवर्ण वोटर भी दयाशंकर मिश्र की तरफ रुख कर सकता है. अब इस त्रिकोणीय लड़ाई में बसपा उम्मीदवार यदि बसपा कोर वोटर के अलावा अपने समाज और भाजपा से नाराज लोगों को अपने पाले में लाने में कामयाब होते हैं तो उन्हें संसद जाने का मौका मिल सकता है. खैर, अब देखना होगा कि क्या हरीश द्विवेदी बदले समीकरण में भी अपनी जीत बरकरार रख पाएंगे या इंडिया गठबंधन के रामप्रसाद चौधरी अपने पिछले वोट बैंक को एकजुट रख पाने में कामयाब होते हैं? अगर यह दोनों लोग इसमें कामयाब नहीं होते हैं तो क्या बसपा के दयाशंकर मिश्र बसपा वोटरों के साथ अपने पुराने कार्यकर्ताओं के बल पर सवर्ण वोट अपने पक्ष में लाने में कामयाब होंगे? यदि ऐसा होता है तो दो लोगों की लड़ाई में उनकी लॉटरी लग सकती है.