
बस्ती, उत्तर प्रदेश:- गणतंत्र दिवस के इस मौके पर हम इतिहास के पन्नों को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं जो अभी तक अनछुए पहलू बने हुए हैं हम बात कर रहे हैं बस्ती जिले के महुआ डाबर की, देश को आजादी दिलाने के लिए क्रांतिवीर पिरई खां के नेतृत्व में उनके गुरिल्ला साथियों ने लाठी-डंडे, तलवार, फरसा, भाला, किर्च आदि लेकर मनोरमा नदी पार कर रहे दमनकारी अंग्रेज अफसरों पर 10 जून, 1857 को धावा बोल दिया. जिसमें लेफ्टिनेंट लिंडसे, लेफ्टिनेंट थामस, लेफ्टिनेंट इंगलिश, लेफ्टिनेंट रिची, लेफ्टिनेंट काकल और सार्जेंट एडवर्ड की मौके पर मारे गए. तोपची सार्जेंट बुशर जान बचाकर भागने में सफल रहा. उसने ही घटना की जानकारी वरिष्ठ अफसरों को दी. इतनी बड़ी क्रांतिकारी घटना से ब्रिटिश सरकार हिल गई थी.
आजाद भारत में भी बेचिराग गांव महुआ डाबर में क्रांतिकारियों के एक्शन से डरी कंपनीराज के कारिंदो ने 20 जून, 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर दिया गया. 3 जुलाई, 1857 को बस्ती कलेक्टर पेपे विलियम्स ने घुड़सवार फौजों की मदद से महुआ डाबर गांव को घेर लिया. घर-बार, खेती-बारी, रोजी-रोजगार सब आग के हवाले कर तहस-नहस कर दिया. महुआ डाबर का नामो निशान मिटवा कर ‘गैरचिरागी’ घोषित कर दिया. यहां पर अंग्रेजों के चंगुल में आए निवासियों के सिर कलम कर दिए गए. इनके शवों के टुकड़े-टुकड़े करके दूर ले जाकर फेंक दिया गया. इतना ही नहीं अंग्रेज अफसरों की हत्या के अपराध में सेनानायक पिरई खां का भेद जानने के लिए गुलाम खान, गुलजार खान पठान, नेहाल खान पठान, घीसा खान पठान व बदलू खान पठान आदि क्रांतिकारियों को 18 फरवरी, 1858 सरेआम फांसी दे दी गई. स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी घटना पर जहां पुरात्व विभाग ने महुआ डाबर की खुदाई की वहीं आजाद भारत में आजादी के इतने वर्षों बाद भी समाज और सरकारों ने दो फूल चढ़ाने के लिए महुआ डाबर में एक अदद स्मारक का निर्माण भी नहीं करा सकी.
पिरई खां स्मृति समिति के संयोजक आदिल खां ने दर्द जाहिर करते हुए बताया कि आज भी लोग ब्लाक तथा जिला अधिकारी महोदय के निर्देश का इन्तजार कर रहे है कि वहां से आदेश आए तो झंडा फहराया जाए कितने अफसोस की बात है क्या इसी दिन के लिए लोगों ने सहादत दी थी. झंडा रोहण के दौरान यारमोहम्मद, अनूप कुमार, हाफिज नसीरुद्दीन, अहमद इस्माइली, साका भाई , दीपक कुमार,नदीम, रोहित कुमार, सोनू कन्नौजिया, कैफ, महेंद्र मौर्या, उमाशंकर, अब्दुलकलाम आदि मौजूद रहे.
शहीदों की भूमि महुआ डाबर आज भी है उपेक्षा का शिकार फिर भी शान से मनाया गया 74 वां गणतंत्र दिवस