Friday , 24 March 2023

हाथों में थामे हाथ, लेते हुए आशीर्वाद… वाराणसी में ये किससे मिले विदेश मंत्री एस जयशंकर

वाराणसी. देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर हैं. इस दौरे पर उनकी एक तस्वीर सामने आई है, जिसमें वह एक बुजुर्ग व्यक्ति से मुलाकात कर रहे हैं. ऊनी टोपी पहने, शॉल ओढ़े जिस शख्स से जयशंकर मिल रहे हैं, उनके बारे में कम ही लोगों को पता है कि वह कौन हैं? तस्वीर में विदेश मंत्री ने उनके हाथों को अपने हाथ में लिया हुआ है. वहीं बुजुर्ग शख्स एस जयशंकर के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं.यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है. जिस बुजुर्ग शख्सियत से जयशंकर मुलाकात कर रहे हैं वह तमिल के महान कवि सुब्रह्मण्यम भारती के भांजे हैं. जयशंकर ने भी यह तस्वीर अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है. उन्होंने बताया कि आज यानी कि रविवार को महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती की जयंती है. इस अवसर पर वाराणसी में उनके परिवार से मुलाकात की. जयशंकर ने कहा, ‘महाकवि भारती के पोते थिरू केवी कृष्णन जी से आशीर्वाद और प्रोत्साहन प्राप्त कर विनीत महसूस कर रहा हूं. जयशंकर ने 97 साल के केवी कृष्णन को अंगवस्त्रम् देकर भी सम्मानित किया और उनका कुशलक्षेम पूछा. उन्होंने उनके परिजन से भी बातचीत की और मकान में बने संग्रहालय का भी निरीक्षण किया. विदेश मंत्री ने इसके बाद कहा कि मैं यहां आकर धन्य हुआ. बता दें कि वाराणसी के हनुमान घाट में रहने वाले केवी कृष्णन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हैं. तमिल के महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती उनके मामा थे.
कौन हैं सुब्रह्मण्यम भारती
सुब्रह्मण्यम भारती महान तमिल कवि महाकवि भरतियार के नाम से जाने जाते हैं. देशभक्ति की भावना से भरी रचनाएं लिखने वाले सुब्रह्मण्यम भारती को राष्ट्रकवि भी कहा जाता है. उन्होंने साहित्य लेखन के अलावा पत्रकारिता की दुनिया में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. 11 दिसंबर 1882 में जन्में सुब्रह्मण्यम भारती ने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया और कांग्रेस के गरम दल के ऐक्टिव मेंबर रहे थे. उनकी राष्ट्रभक्ति वाली कविताओं को पढ़कर दक्षिण भारत में असंख्य लोगों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था. भारती कई भाषाओं के जानकार थे. उन्हें तमिल के अलावा हिंदी, बंगाली, संस्कृत और अंग्रेजी जैसी कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था. तमिल को बेहद मीठी भाषा मानने वाले सुब्रह्मण्यम भारती ने तमिल डेली और इंडिया विजय जैसी पत्रिकाओं का भी संपादन किया था. वह पहले ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपने अखबार में प्रहसनों और राजनैतिक कार्टूनों को भी जगह दी. देशभक्ति भावना से भरपूर उनके दो काव्य ग्रंथ ‘स्वदेश गीतांगल’ और ‘जन्मभूमि’ बेहद मशहूर हैं. इसमें भारती का भारत प्रेम ब्रिटिश शासन को ललकारते नजर आता है. साल 2018 में लल किले पर स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी एक कविता उद्धृत की थी. मोदी ने सुब्रह्मण्यम भारती की तमिल कविता ‘एलारुम एलिनेलैई एडुमनल एरिएई’ का जिक्र किया, जिसका अर्थ होता है- भारत दुनिया के हर बंध से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाएगा.
वाराणसी से भारती का नाता जैसे तमिल का काशी से पुराना नाता है, वैसे ही सुब्रह्मण्यम भारती का भी वाराणसी से गहरा संबंध है. साल 1898 में 16 साल की उम्र में वह काशी आए थे. वह यहां जयनारायण इंटर कॉलेज में पढ़ते थे. महाकवि ने यहीं संस्कृत, बंगाली, हिंदी, मराठी और पंजाबी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया. चार साल रहने के बाद भारती यहां से पांडिचेरी चले गए. उनकी बुआ कुप्पम्माल उर्फ रुक्मिनी अम्माल का घर वाराणसी में है. यहां एक पुस्तकालय का निर्माण कराया जा रहा है, जहां पर महाकवि की कई रचनाएं रखी जाएंगी. वाराणसी के हनुमान घाट के पास सुब्रह्मण्यम भारती की एक प्रतिमा भी स्थापित है, जिसका साल 1986 में राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने शिलान्यास किया था. हनुमान घाट के पास ही सुब्रह्मण्यम भारती का परिवार रहता है, जिनसे मिलने के लिए रविवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर पहुंचे. उन्होंने भारती के 97 साल के भांजे-पोते के साथ मुलाकात की. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को ‘काशी तमिल संगमम’ का उद्घाटन किया था. इस दौरान उन्होंने सुब्रह्मण्य भारती को एक महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी बताया था. मोदी ने कहा था, “सुब्रह्मण्य भारती ने लंबे समय तक काशी में रहकर अध्ययन किया था. उन्होंने खुद को काशी के साथ इस तरह जोड़ा कि यह पवित्र स्थल उनके जीवन का हिस्सा बन गया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने सुब्रह्मण्य भारती को समर्पित एक पीठ की स्थापना की है.”

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