- मोक्ष प्राप्ति में बाधक हैं क्रोध और अहंकार : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
- भव्य स्वागत जुलूस के साथ विद्यार्थियों व श्रद्धालुओं ने किया हार्दिक अभिनंदन
- सानपाड़ावासियों ने अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति
- मंगल प्रवचन से पूर्व जयपुरियार स्कूल के बच्चों को भी दी पावन प्रेरणा
10.02.2024, शनिवार, सानपाड़ा, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र). जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शनिवार को प्रातः सीवुड्स से मंगल प्रस्थान किया. युगप्रधान आचार्यश्री ने मुम्बईवासी श्रद्धालुओं पर ऐसी कृपा बरसाई है कि वर्षों तक श्रद्धालु जनता आप्लावित होती रहेगी. 68 वर्षों के बाद मुम्बई को चतुर्मास की सौगात दी तो इसके साथ ही महामना आचार्यश्री भिक्षु के परंपर पट्टधर ने मुम्बईवासियों अत्यंत करुणा बरसाते हुए तेरापंथ धर्मसंघ के मर्यादा के महामहोत्सव ‘मर्यादा महोत्सव’ का भव्य आयोजन भी नवी मुम्बई में फरमा दिया. इस कारण चतुर्मास की सम्पन्नता के उपरान्त से लेकर मर्यादा महोत्सव के प्रवेश का पूरा समय भी मुम्बईवासियों को प्राप्त हो गया. यह आचार्यश्री महाश्रमणजी कृपा का ही प्रभाव था कि बृहत्तर मुम्बई के अनेकानेक उपनगरों में प्रवासित होने के बाद भी श्रद्धालुओं को अपने-अपने आंगन में आचार्यश्री के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया. 160वें मर्यादा महोत्सव के लिए वाशी में मंगल प्रवेश से पूर्व आचार्यश्री सानपाड़ा में पधारे तो यहां निवास करने वाले श्रद्धालुओं तथा शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के प्रवास स्थल का सौभाग्य प्राप्त करने वाले जयपुरियार स्कूल के लोगों व विद्यार्थियों ने भी आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया. आचार्यश्री सभी पर स्नेहाशीष बरसाते हुए जयपुरियार स्कूल में पधारे.
स्कूल परिसर से कुछ दूर स्थित भूमिराज कोस्टारिका में आयोजित मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अध्यात्म जगत में मोक्ष की बात बताई गई है. जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर भव्य जीव मोक्ष का वरण करते हैं. मानव के मोक्ष प्राप्ति के कुछ बाधक तत्त्व बताए गए हैं. इनमें पहला बाधक तत्त्व है- क्रोध. चण्ड (आवेश युक्त) व्यक्ति मोक्ष को नहीं प्राप्त कर सकता है. मोक्ष तो सामान्य रूप से अत्यधिक गुस्सा करने वाले व्यक्ति को सामान्य जीवन में भी कोई स्वीकार करना नहीं चाहता. गुस्सा परिवार, समाज व राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं होता. बात-बात पर गुस्सा करने वाले से सभी दूर ही रहने का प्रयास करते हैं. इसलिए आदमी को अपने गुस्से को उपशांत करने का प्रयास करना चाहिए. आदमी को विपरीत परिस्थितियों में शांति में रहने का अभ्यास करना चाहिए. इसके लिए आदमी को वैर के भाव को भी त्यागने का प्रयास करना चाहिए. गुस्से का परित्याग कर आदमी को अहिंसा के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए. जीवन में जितनी अहिंसा की चेतना पुष्ट होगी, आदमी मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है. अहिंसा को सभी प्राणियों का कल्याण करने वाली भगवती के समान है. आदमी को क्षमाशील बनने का प्रयास करना चाहिए.
मोक्ष प्राप्ति का दूसरा बाधक तत्त्व है- अहंकार. आदमी को रूप, ज्ञान, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, मान, बल आदि किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए. आदमी को अहंकार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए. आदमी गुस्से और अहंकार से मुक्त हो, जीवन में शांति हो और जीवन सद्गुणों से युक्त हो तो मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकता है. आचार्यश्री ने सानपाड़ावासियों को भी पावन आशीर्वाद प्रदान किया.
साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया. भूमिराज कोस्टारिका के चेयरमेन श्री अमृतलाल खांटेड़, तेरापंथी सभा-वाशी के अध्यक्ष श्री विनोद बाफना व जयपुरिया स्कूल चेयरमेन श्री नवनीत जयपुरिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी. तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने स्वागत गीत का संगान किया.