
शाहिद कपूर और साउथ के सुपर स्टार विजय सेतुपती की ओटीटी डेब्यू “फर्जी” की स्ट्रीमिंग प्राइम वीडियो पर 10 फरवरी से शुरू हो चुकी है. डी 2 आर फिल्म्स के बैनर तले निर्मित “फर्जी” के निर्देशक राज और डीके हैं. लेखन टीम में राज और डीके के साथ सीता आर मेनन और सुमन कुमार भी हैं. वैसे भी इन दिनों फिल्मों से अधिक क्रेज वेबसिरीज का है तथा वेबसीरीज के जरिए फिल्मकार जो बात धड़ल्ले से कह दे रहे हैं, वह बात अब फिल्मों में नहीं रही. कई फिल्में भी ओटीटी पर रिलीज हुई तथा कई वेबसीरीजों ने भी ओटीटी पर इतिहास रचा. उन्हीं क्रम में अब “फर्जी” की भी स्ट्रीमिंग शुरू हो चुकी है. अगर कम शब्दों में फर्जी का रिव्यू करना हो तो कह सकते हैं कि “फर्जी” क्रांति के बदलते मायनों का प्रतिबिंब है. जी हैं, एक अखबार जो क्रांति करने और देश के लोगों को दिशा देने के लिए बड़े संघर्षों से निकाला जा रहा हो, उसके इतने दुरदिन आ जाएं कि उसे चलाने वालों के खाने के भी लाले पड़ जाएं और इसे बचाने के लिए मजबूरन गैरकानूनी काम करने पड़े जाएं तो इसे क्या कहेंगे, हम तो यही कहेंगे कि अब क्रांति के मायने बदल गए हैं और जिससे क्रांति की उम्मीद थी, मजबूरन उसे कुछ ऐसा करने पर मजबूर होना पड़े, जो क्रांति की बुनियाद और विश्वसनीयता को ही हिलाकर रख दे.
कहानीः कहानी की शुरुआत सन्नी (शाहिद कपूर) से होती है, वह बहुत अच्छी पेंटिंग बनाता है और बड़े-बड़े पेंटर्स की हूबहू नकल बना देता है लेकिन चूंकि वह मशहूर पेंटर नहीं है, इसलिए उसकी पेंटिंग्स की वह कीमत नहीं मिलती, जिसका वह हकदार होता है. हालांकि सन्नी का पारिवारिक बैकग्राउंड यह है कि उसकी मां नहीं होती. पिता के साथ रहता है लेकिन पिता न जाने कौन सा काम करते हैं कि बार-बार घर और शहर बदलना पड़ता है. इसी तरह एक बार घर और शहर छोड़कर जाते वक्त सन्नी का पिता उसे ट्रेन में सोता हुआ छोड़कर चला जाता है. जब उसकी आंख खुलती है तो पता चलता है पापा उसे छोड़कर पता नहीं कहां चले गए. वह प्लेटफॉर्म पर उतरकर इस उम्मीद में जमीन पर चित्रकारी करता है कि उसके पापा यह देखकर उसे पहचान लेंगे और अपने साथ ले जाएंगे लेकिन पिता तो नहीं मिलता, हां प्लेटफॉर्म एक दोस्त फिरोज (भुवन अरोरा) जरूर मिल जाता है. दोनों साथ रहते हैं प्लेटफॉर्म पर चित्र बनाकर कुछ पैसे पा जाते हैं उसी से गुजारा कर रह होते हैं, जहां अचानक एक दिन एक बुजुर्गु (अमोल पालेकर) सन्नी की चित्रकारी देखकर अपने साथ ले जाता है तो सन्नी कहता है आप नानू हो ना..! बुजुर्ग हां में सिर हिलाते हैं और उसे ले जाने लगते हैं जिस पर वह कहता है फिरोज को भी साथ ले चलते हैं. दोनों नानू के साथ वहां जाते हैं जहां नानू अपने प्रेस में क्रांति पत्रिका का प्रकाशन करते हैं. दोनों उसे बांटने का काम संभालते हैं लेकिन क्रांति की कद्र करने वाला कोई नहीं है और धीरे-धीरे उनकी आर्थिक हालात इतनी बिगड़ जाती है कि क्रांति पत्रिका का प्रकाशन बंद हो जाता है. मशीन और जगह हाथ से जाने की स्थिति में पहुंच जाता है, जो कि पहले से ही गिरवी है.
सन्नी और फिरोज इसे बचाने के लिए हर प्रयास करते हैं लेकिन कहीं कोई बात नहीं बनती तो उन्हें एक आइडिया आता है, जो कि बेहद खतरनाक और गैरकानूनी है. नानू से छिपाकर क्रांति पत्रिका को बचाने के लिए दोनों वहीं गैरकानूनी तरीके से नकली नोट छापने लगते हैं. लेकिन इधर पुलिस अधिकारी माइकल वेदानयंगम (विजय सेतुपति) अपराधियों और बड़े बड़े रैकेट को खत्म करने के लिए मंत्री जी से परमिशन के लिए पीछे पड़ा हुआ है. उधर मंसूर दलाल (केके मेनन) नकली करंसी कारोबार का किंग है और माइकल उसे पकड़ने के लिए ताकत से जुटा हुआ है. एक बार हाथ आता है लेकिन हाथ से निकल जाता है, जिसमें एक पुलिसकर्मी की जान भी चली जाती है. कहानी में एक और चीज है कि आरबीआई की अधिकारी मेघा व्यास (राशि खन्ना) नकली नोटों को पहचानने के लिए मशीन का डेमो देती है और इसी अभियान में लगी हुई है. इसमें गरीब सन्नी एक लड़की से प्यार भी करता है जो सुपररिच परिवार की है, उसके साथ न्यू इयर सेलिब्रेट करने की भी हैसियत नहीं होती लेकिन फिर भी दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं. अब सन्नी ने जबसे यह गैरकानूनी काम शुरू किया है, उसके पास भी पैसे आ जाते हैं और वह उसके साथ बड़े होटल में खाना खाने जाने लगता है और बिल के साथ टिप भी देता है.
कहानी में आगे बहुत से खुलासे होंगे, यह देखने के लिए पूरी “फर्जी” देखिए. मजेदार तो है, लेकिन कई सारी चीजें तर्कों पर खरा नहीं उतरतीं. हालांकि इंटरटेनमेंट को इंटरटेनमेंट की तरह ही देखें तो बढ़िया रहेगा. तमाम वेबसिरीज की तरह इसमें भी गालियों और अभद्र संवादों का ठीक ठाक प्रयोग हुआ है.
अब बात करते हैं अभिनय की तो अमोल पालेकर ने नानू की बेहतर एक्टिंग की है. शाहिद कपूर, विजय सेतुपति, भुवन अरोरा, केके मेनन, राशि खन्ना आदि कलाकारों की एक्टिंग दमदार और मजेदार दोनों है. हालांकि अगर पूरी वेबसीरीज की बात करें, तो औसत ही है. फिर भी देखेंगे तो मजा आएगा.
. की तरफ से “फर्जी” 3 स्टार.
- दिनेश कुमार
वेबसिरीज रिव्यूः “क्रांति” के बदलते मायनों का प्रतिबिंब है “फर्जी”!