फिल्म “कुसुम का बियाह” 1 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. यह फिल्म कोविड त्रासदी के दौरान हुए एक सच्ची कहानी पर आधारित है, जिसमें बिहार से झारखंड बारात आती है और उसी दिन लॉकडाउन लग जाता है. चुंकि सारे प्रदेशों की सीमाएं सील हो जाती हैँ, इसलिए दोनों राज्य पास होने का बावजूद भी बारात झारखंड में अटक जाती है. फिल्म में इस कहानी को बहुत ही अच्छे ढंग से फिल्माया गया है. आई लीड फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म “कुसुम का बियाह” के निर्माता बलवंत पुरोहित हैं जबकि निर्देशन शुवेंदु राज घोष ने किया है. फिल्म में सुजाना दार्जी, लवकेश गर्ग, राजा सरकार, सुहानी बिस्वास, प्रदीप चोपड़ा, पुण्य दर्शन गुप्ता, रोज़ी रॉय आदि कलाकारों ने अभिनय किया है.
कहानी: बिहार की एक कम्पनी के कर्मचारी बिहार निवासी सुनील की शादी झारखंड की रहने वाली कुसुम से तय होती है. दोनों निम्न मध्य वर्गीय परिवार में खुशी का माहौल होता है. इसी बीच देश में कोरोना की आहट होती है. लोगों में बेचैनी है. लेकिन सभी सोचते हैं किसी तरह दोनों की शादी हो जाये तो अच्छा है. चुंकि कुसुम के पिता इस दुनिया में नहीं रहे, ऐसे में शादी का सारा बोझ उसके दादा जी एवं मां पर होती है. वे चाहते हैं कि जल्दी से बिटिया की शादी हो जाये और वह खुशी-खुशी अपने घर रहने लगे तो जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं. जिस दिन शादी की तारीख़ पड़ती है, उसी दिन देश में जानता कर्फ्यू का ऐलान प्रधानमंत्री द्वारा कर दिया जाता है. हर चीज़ के लिए निश्चित समय सीमा एवं पाबंदिया लग जाती हैं. तमाम कार्यक्रमों के लिए मास्क की अनिवार्यता के साथ ही निश्चित दूरी एवं लोगों की लिमिट तय कर दी जाती. सभी लोग परेशान होते हैं. धूमधाम से शादी करना चाहते हैं लेकिन सारी प्लानिंग पर पानी फिर जाता है. फिर भी सब सोचते हैं कि शादी निपटा ही लेते हैं, पास में बारात जानी है, ज्यादा दिक्कत नहीं होगी. शादी का दिन आता है, तमाम सावधानियों के साथ बारात लड़की के घर जाती है, शादी होती है लेकिन दूसरे दिन जैसे ही विदाई होती है, कड़ाई से लॉकडाउन का पालन करने का सरकारी आदेश आ जाता है और बारात पुलिस द्वारा रोक दी जाती है. इसके बाद तो जो दिक्कतें दोनों परिवारों को होती है, शासन, प्रशासन, व्यवस्था और लोगों को क्या क्या झेलना और करना पड़ता है, यह सब फिल्म में बखूबी दिखाया गया है. बारात की विदायी के लिए झारखंड के जिला प्रशासन की अनुमति लेते हैँ लेकिन चुंकि बिहार सरकार की अनुमति नहीं है, इसलिये बिहार पुलिस राज्य के सीमा में नहीं जाने देती और पुरी बारात बिहार-झारखंड को जोड़ने वाले लम्बे पुल पर अटक जाती है. इसके बाद और क्या क्या होता है, यह सब देखने 26 लॉकडाउन की त्रासदी को करीब से समझने के लिए एक बार फिल्म “कुसुम का बियाह” जरूर देखें. फिल्म के हर पहलू को बहुत बरीकी से फिल्माया गया है.
अभिनय, निर्देशन एवं संगीत: फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत ही उम्दा अभिनय किया है. पुरी तरह से झारखंड एवं बिहार के कल्चर, बोली एवं रहन सहन बेहतरीन ढंग से जिया है. ऐसा लगता है, हम फिल्म न देखकर उनके आस-पास रह रहे हों. यदि संगीत की बात करें तो फिल्म के हिसाब से वह भी बेहतरीन पन पड़ा है. कुल मिलाकर “कुसुम का बियाह” एक बेहतरीन फिल्म है, जिसे देखा जाना चाहिए.
. की तरफ से फिल्म को 4 स्टार.
– दिनेश कुमार