बस्ती, उत्तर प्रदेश:- 21 मई को केनथू चौराहे पर सिम पोर्ट कर रहे सितेश को मारने पीटने के मामले में अभी तक प्रभारी निरीक्षक सोनहा ने मुकदमा पंजीकृत नहीं किया. जब की घटना के दिन ही सितेश ने प्रभारी निरीक्षक सोनहा को प्रार्थना पत्र दिया था, इसके उपरांत 24 तारीख को पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र देने के लिए बस्ती गया लेकिन पुलिस अधीक्षक से मुलाकात ना हो पाने की वजह से प्रार्थना पत्र स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेज दिया था. 12 दिन बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही न होते देख आज फिर सितेश और उनके परिजन लगभग दर्जन पर लोगों के साथ एसपी कार्यालय पर पहुंचकर नारा लगाते हुए प्रभारी निरीक्षक के ऊपर जातिगत पक्षपात करने का आरोप एवं नारा लगाते हुए उनको हटाने की मांग की.
दरअसल मामला यह था कि केनथू चौराहे पर सितेश कुमार पुत्र बुधिराम ग्राम मुरादपुर को दबंगों ने जमकर मारा पीटा. सितेश केनथू चौराहे पर सिम पोर्ट का कैंप लगाया हुआ था जहां पर अतुल मिश्रा, जितेंद्र मिश्रा, दुर्गेश मिश्रा सिम पोर्ट करवाने आए थे. सिम पोर्ट करवाने के बाद जब यह लोग जाने लगे तब सितेश ने सिम पोर्ट करवाने का चार्ज ₹20 मांगा बस क्या था तीनों लोग उस पर विफर पड़े और मां बहन एवं जाति सूचक शब्दों से गाली गलौज करने लगे पीड़ित के द्वारा विरोध किए जाने पर तीनों लोगों ने लात घुसो से जमकर मारा पीटा. सितेश को धमकी देते हुए केनथू के प्रधान राजू मिश्रा ने कहा कि सुलह समझौता कर लो नहीं तो तुमको फर्जी चोरी के इल्जाम में फंसा देंगे. पीड़ित के ऊपर सोनहा थाने से भी दबाव पड़ रहा है कि मामले को रफा-दफा कर दो वरना फर्जी मुकदमे में तुम्हारे खिलाफ अभियोग पंजीकृत करके जेल में डाल दिया जाएगा. दलितों के कई मामलों में प्रभारी निरीक्षक सोनहा चुप्पी साध लेते हैं या तो सुलह समझौता कराके वापस भेज देते हैं या फिर मुकदमा ही पंजीकृत नहीं किया जाता और मुकदमा भी पंजीकृत किया जाता है तो उल्टे पीड़ित दलित नाबालिक लड़कों के ऊपर मुकदमा पंजीकृत करके चार दिनों के लिए जेल में डाल दिया जाता है. पड़री मामले में देखने को मिला कि 17 साल के नाबालिक बच्चों को गंभीर धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करते हुए उल्टे जेल में डाल दिया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश है किसी भी नाबालिक को पुलिस कस्टडी या जेल में नहीं रखा जा सकता. अब देखना यह है कि क्या प्रशासन इस मामले का संज्ञान लेते हुए प्रभारी निरीक्षक सोनहा के ऊपर जांच बैठाती है या फिर पीड़ितों को न्याय के लिए उच्च न्यायालय का ही रुख करना पड़ेगा.