भदोही में तीसरी बार खिला भाजपा का कमल और फिर लहराया भगवा 

  • अखिलेश यादव और मामता के सियासी गठजोड़ पर जनता ने नहीं लगाई मुहर 
  • बहुजन समाजवादी के उम्मीदवार दादा नहीं कर पाए बेहतर प्रदर्शन

 प्रभुनाथ शुक्ल/भदोही. पूर्वांचल में भाजपा- एनडीए अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई उसके बाद भदोही में भाजपा लगातार तीसरी बार कमल ख़िलाने में कामयाब रहीं. मुस्लिम एवं यादव मतों के ध्रुवीकरण के बाद तृणमूल उम्मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी पर भाजपा के डॉ विनोद बिंद भारी पड़े. भाजपा को जहाँ 458042 वोट मिले वहीं तृणमूल को 413708 जबकि बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार हरिशंकर चौहान दादा को 154207 मत मिले. करीब 44 हजार वोट से उन्होंने तृणमूल को पराजित किया. भदोही की राजनीति में एकबार बिंद समाज ने अपनी तागत दिखा दिया है. जो उम्मीद की जा रहीं थीं कि ब्राह्मण वोट ललितेशपति के साथ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ वह राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के साथ खड़ा रहा.
मतगणना के शुरुआती रुझानों से ही भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार डॉ विनोद बिंद अपनी बढ़त बनाए रखे. जबकि तृणमूल उम्मीदवार ललितेशपति त्रिपाठी के साथ सबसे बड़ी त्रासदी उनका चुनाव चिन्ह साबित हुआ. जिसकी वजह से उन्हें चुनाव में पिछड़ते गए और करारी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा सांसद रमेश बिंद के समाजवादी पार्टी में जाने के बाद यह दिख रहा था कि रमेश बिंद के समर्थक तृणमूल के साथ जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भारतीय जनता पार्टी भदोही से तीसरी बार कमल खिलाने में कामयाब रहीं. डॉ विनोद बिंद जाति की सवारी पर अपनी नैया को पार कर ले गए जबकि पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर भाजपा की हालत बहुत अच्छी नहीं दिखीं.
ललितेशपति त्रिपाठी का चुनाव निशान अगर साइकिल या पंजा होता तो चुनाव की दिशा कुछ अलग होती. फिर भी ललितेशपति ने अच्छी लड़ाई लड़ी है, लेकिन चुनाव चिन्ह उनके लिए सबसे बड़ा फैक्टर साबित हुआ. चुनाव के कुछ दिन पहले यह देखा जा रहा था कि ब्राह्मण मत तृणमूल की झोली में जाएगा लेकिन ऐसा नहीं दिखा. चुनाव करीब आते आते स्थितियां बदल गई. ब्राह्मण हिंदुत्व और राम मंदिर के साथ राष्ट्रवाद के साथ खड़ा दिखा. लेकिन अगर सीधे समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ती तो भदोही की लड़ाई की तस्वीर कुछ दूसरी होती.
बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार हरिशंकर चौहान दादा उतना उम्दा प्रदर्शन नहीं कर पाए. अगर हम 2009 की बात करें तो यहां से बसपा के पंडित गोरखनाथ पांडेय चुनाव में जीत दर्ज किया. 2014 में भाजपा से वीरेंद्र सिंह मस्त चुनाव जीते. जबकि 2019 में भाजपा से ही डॉक्टर रमेश बिंद ने भगवा का परचम लहराया. भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर भदोही में जाति कार्ड खेलकर रमेश बिंद का टिकट काटकर मिर्जापुर के मझवा से समाजवादी पार्टी के विधायक डॉ विनोद बिंद को उम्मीदवार बनाया और वह अपने रणनीति में सफल रहीं. 2008 में परिसीमन के बाद भदोही सीट पर सिर्फ एक बार बहुजन समाज पार्टी की दर्ज की जबकि तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी ने भगवा का परचम लहराया है. लेकिन देश में बदले सियासी माहौल में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भदोही की सीट को ममता दीदी के लिए कुर्बान कर शायद बड़ी भूल किया.
भदोही लोकसभा सीट पर बसपा साल 2014 और 2019 में लगातार दूसरे नंबर पर कायम थीं. 2014 में पूर्वमंत्री राकेशधर त्रिपाठी और 2019 में पूर्वमंत्री रंगनाथ मिश्र यहां दूसरे नंबर पर रहे. इसका प्रमुख कारण यह था कि दोनों लोगों को ब्राह्मण मत काफी संख्या में ट्रांसफर हुए थे. ललितेशपति त्रिपाठी के साथ ऐसा नहीं हुआ. अगर वे कांग्रेस या समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ते तो स्थिति दूसरी होती. हालांकि भदोही की जनता ने तीसरी बार बाहरी उम्मीदवार को गले लगाया है. वह चाहे वीरेंद्र सिंह सिंह मस्त रहे हों या रमेश बिंद या फिर डॉक्टर विनोद बिंद. फिलहाल भाजपा तीसरी बार जाति की बैसाखी के भरोसे अपना जलवा कायम रखा है. यहाँ डॉ विनोद बिंद की जीत के साथ बिंद समाज की राजनैतिक हैसियत और मजबूत हो गईं है.