- भदोही लोकसभा में सरायकंसराय गाँव के लोग नहीं डालेंगे 25 मई को वोट
- रेलमंत्री मनोज सिन्हा, सांसद रमेश बिंद और पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त भी नहीं किया गौर
प्रभुनाथ शुक्ल/भदोही. भदोही की चुनावी फ़िजा में शोर है. राजनीतिक दलों की रैलियों में गगनभेदी जिंदाबाद है. गरीब है, अमीर, जाति है धर्म है, आरक्षण है, विकास का सपना है. लेकिन बस ! सिर्फ़ झूठे कसमें और वायदे हैं, मुद्दों की जमीन खाली है. विकास को लेकर लोगों में एक पीड़ा है नेताओं के खिलाफ खींझ है. जनता अब खुद निर्णय ले रही है की उसे कहाँ और किसके साथ खड़ा होना है. आजादी के 75 सालों में जब रेल फाटक की माँग पूरी नहीं हुईं तो जनता का भरोसा उठ गया और लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व में सहभागिता न करने का गाँव की जनता ने फैसला कर लिया.
उत्तर प्रदेश का जनपद भदोही खूब सूरत कालीनों के लिए दुनिया में विख्यात है. हजारों करोड़ के कालीन का निर्यात यहाँ से निर्यात होता है. लेकिन यहाँ का विकास बदहाल है और मुद्दों की जमीन खाली है. नेता सिर्फ चुनाव के समय गाँव -गली में दिखते हैं और जीत के बाद फिर जनता के जमीनी मसलों से मुँहमोड़ लेते हैं. बुधवार को गाँव वालों ने पूरे गाँव और बस्ती में रैली निकाल कर यह नारा दिया की ‘फाटक नहीं तो वोट नहीं’. भदोही जिला मुख्यालय से तक़रीबन 25 किमी उत्तर -पश्चिम स्थिति सरायकंसराय गाँव रेल समपार का निर्माण नहीं हो पाया. गाँव के जिम्मेदार लोग सांसद, रेलमंत्री से कई बार मिलकर अपनी समस्या को अवगत कराया लेकिन समाधान जब नहीं निकला तो ‘रेल फाटक नहीं तो वोट’ का फैसला करना पड़ा. यह जमीनी सच्चाई है की रेल फाटक न होने से गाँव के लोग बहुत पीड़ित हैं. गाँव की बड़ी आबादी 25 मई को वोट नहीं करेगी पूर्वांचल में सातवें चरण में वोट डाले जाएंगे.
क्या है समस्या
भदोही जनपद का सरायकंसराय गाँव सीमावर्ती इलाका है. यह जौनपुर और भदोही की सीमा का इस का छोर में अंतिम गाँव है. बड़ी आबादी वाला गाँव है. वाराणसी -लखनऊ रेलखंड के सुरियावां -सरायकंसराय रेल स्टेशन के मध्य स्थिति है. गाँव के बीच से रेल लाइन गुजरती है जिसकी वजह से गाँव की आबादी दो खंड में विभाजीत हो गईं है. बारिश के मौसम में जब वरुणा नदी में में पानी बढ़ता है तो गाँव का संपर्क जौनपुर से टूट जाता है क्योंकि नदी पर कोई पुल नहीं है. दूसरी तरफ यह रेल समस्या है. पहले सिंगल रेल लाइन थीं तो गाँव के लोग जोखिम लेकर ट्रैक पार हो जाते थे लेकिन अब डबल होने से यह समस्या और विकराल हो गईं है.
गाँव की क्या है समस्या
गाँव के छात्र -छात्राओं को उच्चशिक्षा के लिए दुर्गागंज, सुरियावाँ और जिला मुख्यालय ज्ञानपुर, भदोही जाने के लिए 10 किमी का चक्कर लगाना पड़ता है. जिसकी वजह से पढ़ाई में जहाँ दिक्क़त है वहीं जीवन भी असुरक्षित है. इमरजेंसी में लोग रेल फाटक न होने से अस्पताल नहीं पहुँच पाते हैं. दुर्गागंज पुलिस वक्त पर गाँव में नहीं आ पाती है. शादी -ब्याह और गृहनिर्माण और दूसरी जरूरत के लिए रेल फाटक बड़ी बधा है क्योंकि वाहन गाँव में नहीं आ पाते हैं. गाँव की खेती दो हिस्सों में बट गईं है जिसकी वजह से जुताई-बुआई में दिक्क़त होती है. मवेशियों के लिए भारी समस्या है. रेल फाटक न होने से कई दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. दूसरी तरफ दूसरे रास्ते से जहाँ दूरी बढ़ जाती है वहीं ग्रामीणों को वाहनों का अधिक किराया भी देना पड़ता है. लेकिन राजनेताओं ने कभी जनता की जमीनी समस्या पर ध्यान नहीं दिया.
समस्या ने लिया आंदोलन का रूप
लोकसभा चुनाव की अचार संहिता लागू होने के पूर्व से गाँव वाले मीडिया के माध्यम से अपनी माँग रख रहे हैं. जिला मुख्यालय पहुँच कर तत्कालीन डीएम गौरांग राठी भदोही को समस्या से अवगत भी कराया है. सोशलमीडिया के माध्यम से रेलमंत्री और सम्बंधित अफसरों को भी अवगत कराया गया, लेकिन कोई जिम्मेदार व्यक्ति रेल और शासन के तरफ से ग्रामीणों की समस्या सुनने नहीं आया. चुनावी मौसम में विभिन्न दलों के राजनेता गाँव में आ रहे हैं और आश्वासन दे रहे हैं की आपकी समस्या का समाधान होगा लेकिन गाँव वाले नेताओं से इतना धोखा खाए हैं की अब उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं. इस समस्या को लेकर गाँववालों की कई बार बैठक भी हो चुकी है. मंगलवार को गोमतेश्वर मंदिर पर अंतिमबार बैठक हुईं जिसमें आम सहमति से यह निर्णय लिया गया की लोकसभा चुनाव का पूरी तरीके से बहिष्कार किया जाएगा और गाँव के लोग वोटिंग नहीं करेंगे. गाँववालों का कहना है की अब हम नेताओं के झूठे वायदों पर भरोसा नहीं करेंगे. 75 सालों से हम वायदों में लूट -पिट गए. अबकी बार वोट नहीं डालेंगे.
क्या बोले ग्रामप्रधान
सरायकंसराय गाँव के युवा मुखिया यानी ग्राम प्रधान नन्दलाल मिश्र ने बताया की हमारा गाँव 75 साल से इस समस्या को झेल रहा है. गाँव के लोग कितने परेशान हैं यह वहीं जान सकते हैं. हम इस समस्या को लेकर रेलमंत्री मनोज सिन्हा, भदोही सांसद रमेश बिंद पूर्व सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त और रेल अधिकारियों लिखित रूप से अवगत कराया और व्यक्तिगत समस्या भी बताई लेकिन हमारी माँग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. पूर्व की केंद्रीय और राज्य की सरकारों ने भी हमारी समस्या नहीं सुनी. गाँव वालों की मांग पर आम सहमति से मंगलवार रात में गोमतेश्वर मंदिर पर गाँव वालों की सार्वजनिक बैठक हुईं जिसमें वोटिंग न करने का फैसला करना पड़ा. इस बार हम झूठे वादे पर विश्वास नहीं करेंगे. गाँव के लोग एक जुट हैं हमारी समस्या का निदान नहीं हुआ इसलिए ‘रेल फाटक नहीं तो वोट नहीं’ की माँग जायज है हम गाँव के साथ हैं.