पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से हो आरक्षण की व्यवस्थाः पिछड़ा वर्ग कल्याण संघ

हैदराबाद. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग कल्याण संघ के अध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य आर कृष्णैया ने महिला विधेयक में पिछड़ा वर्ग (बीसी) में महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था करने की मांग की है. श्री कृष्णैया ने इस संबंध में कांग्रेस, जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम, नेशनल लिफ्ट कांग्रेस बीएसपी, राष्ट्रीय जनता दल और कम्युुनिस्ट पार्टी तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्षों सहित सभी प्रमुख राजनीतिक दलों को पत्र लिखा है.
उन्होंने कहा कि यदि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, तो महिला विधेयक का महत्व कम हो जाएगा. उन्होंने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य राजनीतिक में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है. उन्होंने सवाल किया कि अलग से आरक्षण की व्यवस्था के लिए पिछड़़े वर्ग की महिलाओं पर विचार क्यों नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने पिछड़ा वर्ग के प्रति सहानुभूति दिखाई है और यहां तक कि बीसी पुरुषों का सामान्य प्रतिनिधित्व भी कम है.
श्री कृष्णैया ने कहा कि एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में एकता, अखंडता और शांति को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक जाति और सामाजिक समूह को उसकी जनसंख्या के आधार पर हिस्सा मिलना चाहिए. उन्होंने जोर देकर कहा कि पिछड़ा वर्ग का उचित हिस्सा रोकना गलत है और अब पिछड़े वर्ग को संवैधानिक अधिकार और उनका उचित हिस्सा देने का समय आ गया है.
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पिछड़े वर्ग को सभी क्षेत्रों में उनकी जनसंख्या-आधारित हिस्सेदारी से वंचित किया जाता रहा, तो इससे देश में अशांति पैदा हो सकती है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछड़े वर्ग का सही विकास तभी होगा जब वे राजनीतिक शक्ति हासिल करेंगे, जिसे विधायी निकायों में आरक्षित सीटों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (एससी/एसटी) को राजनीतिक आरक्षण से लाभ हुआ है. उन्होंने बताया कि पिछड़ा वर्गा देश की कुल आबादी का 54 प्रतिशत हैं और यह समुदाय आरक्षण के अभाव में पिछड़ गया है.
श्री कृष्णैया ने पिछड़े वर्ग के सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व को दर्शाते हुए डेटा प्रदान किया, जिसमें आजादी के बाद के 75 वर्षों में 2600 से अधिक पिछड़े वर्ग की जातियों में से केवल 50 ने संसदीय सीटें जीतीं. अपनी 56 प्रतिशत जनसंख्या हिस्सेदारी के बावजूद, संसद में पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत से भी कम है. भारत के 29 में से 16 राज्यों में एक भी पिछड़ा वर्ग का सांसद नहीं है. उन्होंने आबादी के 54 प्रतिशत हिस्से वाले पिछड़े वर्गों को शिक्षा, रोजगार, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक लाभ प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान में संशोधन करने की आवश्यकता पर भी बल दिया.