एक माह पूर्व बसपा से निष्कासित लवकुश पटेल को टिकट, बसपा के कार्यकर्ता एवं वोटरों में भारी आक्रोश

राजकुमार गौतम/बस्ती (उत्तर प्रदेश). अपने अजीबोगरीब कारनामों के चलते बसपा की छवि उत्तर प्रदेश में लगातार धूमिल हो रही है. लोकसभा चुनाव 2024 में कई प्रत्याशियों की उम्मीदवारी नाटकीय ढंग से बदले गए, जिनमें जौनपुर, डुमरियागंज और बस्ती की लोकसभा सीट प्रमुख रूप से शामिल है. डुमरियागंज में तो बार-बार प्रत्याशी बदले जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष व उपाध्यक्ष दिनेश चंद्र गौतम और मोहम्मद शमीम को चप्पल की माला पहनकर जमकर लात घुसो से पीटा गया, वहीं पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि बसपा पदाधिकारी पैसा लेकर बार-बार उम्मीदवार का नाम बदल रहे थे. कुछ ऐसे ही घटना बस्ती में भी देखने को मिली कल 6 मई दिन सोमवार को एकाएक पूर्व विधायक नंदू चौधरी के सुपुत्र लव कुश पटेल ने बसपा से पर्चा दाखिल किया इसके पूर्व बसपा से टिकट पाए उम्मीदवार दयाशंकर मिश्र अपने दम खम से पर्चा दाखिल करके चुनाव क्षेत्र में डटे हुए थे. अब जब यहाँ अचानक प्रत्याशी बदल दिया गया है, ऐसे में पार्टी कार्यकर्ता निराश और नाराज हो गये हैं.
बताते चलें कि यहाँ पार्टी ने उम्मीदवार को बदलकर इस बार जिसे उम्मीदवार बनाया गया है, उनका क्षेत्र में प्रभाव काफी कम है, इसके अलावा बस्ती के बसपा जिलाध्यक्ष जय हिंद गौतम ने 20 अप्रैल 2024 को अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए लवकुश पटेल को बसपा से निष्कासित कर दिया था. बसपा से निष्कासित लवकुश पटेल को एकाएक टिकट मिल जाने से और दयाशंकर मिश्र की उम्मीदवारी खत्म होने से बसपा कार्यकर्ता एवं वोटरों में खलबली मच गई है. लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. चर्चा तो यहां तक भी हो रही है कि बसपा के स्थानीय पदाधिकारीयों ने पैसे लेकर दयाशंकर मिश्र की उम्मीदवारी को खत्म करवाया है. लोगों में अभी चर्चाएं हो रही हैं कि राम प्रसाद चौधरी को शिकस्त देने के लिए दयाशंकर मिश्र का टिकट कैंसिल करवाया गया और लव कुश पटेल को बसपा से उम्मीदवार बनाया गया जिससे रामप्रसाद चौधरी की जातीय समीकरण बिगाड़ सके और भाजपा से निवर्तमान सांसद हरीश द्विवेदी को और मजबूती मिल सके.
बात अगर बस्ती में बसपा के संरचनात्मक ढांचे की बात की जाए तो यह लगभग 8 सालों से अपने ढुलमुल रवैये पर चल रही है, बसपा ने इन 8 सालों में ना ही कोई प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ व्यक्ति को उच्च पदों पर पदस्थ किया और ना ही बस्ती जनपद में अपनी रणनीतियों को धरातल पर सुदृढ़ किया. राजनीतिज्ञों की माने तो यदि यही रवैया रहा और बस्ती में बसपा ने अपने कार्यकारी समिति में फेर बदलाव नहीं किया तो बहुत जल्द बस्ती सहित पूरे उत्तर प्रदेश में बसपा का नामोनिशान मिट जाएगा और इसके जिम्मेदार बसपा के पदाधिकारी होंगे जो पैसे लेकर दलितों, पिछडों और वंचितो के वोटों की सौदेबाजी करते हैं.