बस्ती लोकसभा क्षेत्र: चुनावी सारगर्मियां तेज, किसको मिलेगा ताज, कौन होगा सरताज!

  • सपा-भाजपा की सीधी टक्कर में बसपा ने मुकाबले को किया दिलचस्प

राजकुमार गौतम/बस्ती (उत्तर प्रदेश). जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है राजनीतिक गलियारों में सरगर्मियां बढ़ रही हैं. अपने चुनावी समर में आज हम बात करेंगे उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्र बस्ती की, जहां से विधानसभा चुनाव में तीन सीटें सपा को मिली थीं, एक सीट सुभासपा व एक सीट पर भाजपा काबिज हो सकी थी. यहाँ के भाजपा सांसद हरीश द्विवेदी दो बार से चुनाव जीत रहे हैं तथा इस बार भी पार्टी ने इन पर ही भरोसा जताते हुए उम्मीदवार बनाया है जबकि समाजवादी पार्टी ने जिले के दिग्गज़ नेता रामप्रसाद चौधरी को टिकट दिया है. चौधरी यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और सांसद रहने के बाद वे लगातार पांच बार से विधायक भी रहे हैं. वर्तमान में रामप्रसाद चौधरी के पुत्र कविंद्र ‘अतुल’ चौधरी कप्तानगंज विधानसभा 308 से विधायक भी हैं. अब सवाल है कि क्या हरीश द्विवेदी तीसरी बार जीत का हैट्रिक लगा पाएंगे या रामप्रसाद चौधरी यह सीट जीतकर सपा की झोली में डालेंगे? बसपा द्वारा जब तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं हुई थी, तब तक यह मुकाबला दोनों के बीच कांटे का लग रहा था लेकिन बसपा की ओर भाजपा के बागी दयाशंकर मिश्र को टिकट दिये जाने के बाद यहाँ की लड़ाई काफी फिलचस्प हो गयी है. बावजूद इसके लोग अनुमान लगा रहे हैं कि सपा प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी का रास्ता आसान दिखने लगा है.
भाजपा से लगातार दो बार सांसद रहे हरीश द्विवेदी की मुश्किलें दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं. पूर्वांचल के कद्दावर नेता कहे जाने वाले राम प्रसाद चौधरी चुनावी रणनीतियों में जुट गए हैं, राम प्रसाद चौधरी कुर्मी बिरादरी से आते हैं. खास बात यह है कि रामप्रसाद चौधरी जहाँ होते हैं, उनकी पूरी बिरादरी भी उसी तरफ होती है, क्षेत्र में उनका काफी प्रभाव होने के कारण दूसरी बिरादरी के लोगों में भी उनकी अच्छी लोकप्रियता है.
पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन में उन्हें प्रत्याशी के तौर पर पार्टी ने मैदान में उतारा था, लेकिन मोदी लहर में बदले समीकरण के चलते उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. इस बार स्थितियां काफी कुछ बदल चुकी हैं, एंटी इनकम्बेंसी भी है, ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें भी बढ़ गई हैं.
वैसे लोगों का मानना है कि वर्तमान में लड़ाई त्रिकोणीय स्तर की हो गई है लेकिन राजनीतिक दृष्टि से आकलन किया जाए तो बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी उतार कर भाजपा के वोटों पर अप्रत्यक्ष रूप से प्रहार किया है. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बस्ती लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीट हैं जिनमें तीन सीटों पर सपा का दबदबा आज भी कायम है. एक पर भाजपा के प्रत्याशी और दूसरे पर ओमप्रकाश राजभर की पार्टी से ‘सुभासपा’ से दुधराम जीते हुए विधायक हैं. यह उस समय का गठबंधन था जब सपा और सुभासपा मिलकर चुनाव लड़ रहे थे. वैसे अप्रत्यक्ष रूप से यह भी कहा जा सकता है कि गठबंधन के कारण सुभासपा की सीट निकल पाई थी, जबकि राजनीतिक दृष्टिकोण से यह सीट भी सपा की ही मानी जा सकती है क्योंकि सपा इस सीट पर अपना समर्थन सुभासपा को दिया था और अपने प्रत्याशी नहीं उतारे थे. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि सपा के रामप्रसाद चौधरी के लिए रास्ता काफी आसान है.
अब बात करते हैं वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य ही, जिसमें जातीय समीकरण का उल्लेख करना बहुत ही आवश्यक है. राम प्रसाद चौधरी बस्ती के राजनीति में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं वह कुर्मी बिरादरी से आते हैं. कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र है. हालांकि कि यह सब इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि इस बार बसपा अलग लड़ रही है, ऐसे में एकमुश्त बसपा वोट इन्हें नहीं मिलेगा. पिछली बार सपा – बसपा का गठबंधन था तथा बसपा के वोटरों ने रामप्रसाद चौधरी के पक्ष में वोट डाला था.
रही बात ठाकुरों की तो कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र में महेश सिंह की चर्चा अहम हो जाती है. पूर्व गौर ब्लाक प्रमुख पद से उन्हें भाजपा समर्थित जटाशंकर शुक्ल ने हराया था, इस बात का प्रभाव कहीं ना कहीं कप्तानगंज और प्रमुखत: गौर ब्लाक में देखने को मिलेगा. चूँकि महेश सिंह कप्तानगंज विधानसभा क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं, ऐसे में यह कहना तो मुश्किल है कि उनका झुकाव राजनीति के किस पलड़े में होगा. लेकिन यह कयास जरूर लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के विपक्ष में ही इनका रुझान हो सकता है. अब वे इंडिया गठबंधन की तरफ जाते हैं, बसपा प्रत्याशी की तरफ जाते हैं, या भाजपा को अपना समर्थन देते हैं, यह वक्त ही बताएगा.
लोगों में चर्चा यह भी चल रही है कि दयाशंकर मिश्र भाजपा के बहुत ही जुझारू, निष्ठावान एवं प्रिय कार्यकर्ता हुआ करते थे. 2014 में उन्होंने जिला अध्यक्ष की कमान संभाली और हरीश द्विवेदी को टिकट दिलवाकर बस्ती जिले से उनको सांसद बनवाने में ऐड़ी से चोटी तक का जोर लगा दिया था. दयाशंकर मिश्र भाजपा के पुराने कार्यकर्ता थे, बीजेपी में उनकी पकड़ मजबूत थी और जातीय समीकरण भी उनका मजबूत था, जो उनके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. जबकि यह सभी को पता है कि बसपा के वोटो को काटना बड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में अगर बसपा का संपूर्ण वोट और ब्राह्मण बिरादरी का 50% वोट एवं मुसलमानों का 50 से 60% वोट व अन्य बिरादरियों का वोट जो भाजपा से असंतुष्ट हैं अगर दयाशंकर मिश्र को मिल जाते हैं तो सीट को अपने कब्जे में करना कोई मुश्किल काम नहीं है.
खैर, चुनावी सरगर्मियां जैसे-जैसे बढ़ रही हैं वैसे-वैसे चर्चाएं भी बदल रही हैं. हर पार्टी का नेता अपने समीकरण को सेट करने में लगा हुआ है. बस्ती लोकसभा का चुनाव छठवें चरण में होने के कारण समय तो अभी बहुत है परंतु यह सोचकर प्रत्याशी निश्चिन्त बैठने वालों में से नहीं हैं, वे लगातार क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाने के लिए अपने समर्थकों के साथ पसीना बहा रहे हैं. सभी जातीय, सामाजिक समीकरण तथा राजनीतिक जोड-तोड में कोई कमी नहीं रख रहा है. आपको बताते चलें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हरीश द्विवेदी 4,71,162 वोट पाकर विजयी हुए थे जबकि गठबंधन प्रत्याशी रामप्रसाद चौधरी को 4,40,808 मत मिले थे तथा वे दूसरे नम्बर पर थे. तीसरे नम्बर पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार राजकिशोर सिंह को कुल 86,920 वोट मिले थे.