भदोही की राजनीति में मजबूत और अहम होती बिंद जाति की पकड़ 

  • मुलायम सिंह के राजनीतिक प्रयोग का अनुसरण करती भाजपा 
  • फूलन देवी, रामरति बिंद और रमेश बिंद रहें जातिय प्रयोग के सफल चेहरे

भदोही. राजनीति में अब जाति अहम हो गई है. उम्मीदवार की राजनैतिक हैसियत और उसका जनता से सरोकार अब मतलब नहीं रखता. यहीं कारण है की बदले राजनीतिक दौर में जनछबि वाले राजनेताओं का अभाव हो गया है. अब पार्टियों की पहली पसंद जाति, धनबल और सेलिब्रेटी चेहरे हो गए हैं. भदोही लोकसभा में हाल के सालों में जाति की गणित बड़ी दिलचस्प हो गई है. बिंद, निषाद और मल्लाह जैसी पिछडी जाति की राजनैतिक अहमियत बढ़ी है.
भदोही लोकसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक प्रयोगशाला बन गई है. यह सीट एक बार फिर निषाद पार्टी के खाते में चली गई है. यह दीगर बात है कि चुनाव कमल के निशान पर ही लड़ा जाएगा. निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद ने खुद एक्स पर ट्वीट कर इस तरह की जानकारी साझा किया है. भदोही की सियासत में हाल के दिनों में निषाद पार्टी की हैसियत काफी बढ़ी है. साल 2022 के राज्य विधानसभा चुनाव में जब से ज्ञानपुर से चार बार के विधायक बाहुबलीपुर विजय मिश्र को निषाद पार्टी ने हराया तभी से निषाद पार्टी की अहमियत महत्वपूर्ण हो गई. विधानसभा के चुनाव में निषाद पार्टी ने ज्ञानपुर से विपुल दुबे को टिकट दिया था. उन्होंने विजय मिश्र को पराजित किया. विजय मिश्र के लिए यह सीट अजेय मानी जाती थी. लेकिन जेल में बंद होने के बाद विपुल दुबे से उन्हें चुनाव में हरा दिया. जिस काम को भाजपा, बसपा और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल नहीं कर पाए उसे बड़ी आसानी से निषाद पार्टी ने कर दिया.
ज्ञानपुर से विपुल दुबे की जीत के बाद भदोही में निषाद पार्टी की राजनीतिक हैसियत काफी मजबूत हो गई. क्योंकि यहां ज्ञानपुर, हंडिया और प्रतापपुर में बिंद की बहुलता है जिसका सीधा लाभ निषाद पार्टी को मिला और विपुल दुबे की जीत हुई. 2024 में एक बार फिर यह प्रयोग दोहराया जा रहा है. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार रमेश बिंद विजय रहें हैं. लेकिन फिर भी यह सीट निषाद पार्टी के खाते में हैं. लेकिन लाभ इसका लाभ भाजपा को ही मिलेगा.
भदोही में राजनीतिक लिहाज से बिंद, निषाद और मल्लाह जैसी जातियां निर्णायक और अहम स्थान रखती हैं. यही कारण है कि भाजपा और समाजवादी जैसी पार्टियों को इस जाति से आने वाले उम्मीदवार बेहद पसंद हैं.भदोही इन जातियों को लेकर सियासी प्रयोगशाला बन गया है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव ने 1996 में पहली बार इस जाति पर सियासी दाँव लगाया था. उन्होंने बिहड़ों की रानी दस्यु सुंदरी फूलन देवी को मिर्जापुर -भदोही लोकसभा सीट से टिकट देकर भदोही-मिर्जापुर की सियासत में पहली बार बिंद, मल्लाह और निषाद जाति पर प्रयोग किया. मुलायम सिंह यादव का यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा. फूलन देवी इस लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद निर्वाचित हुई. वह 1996 से 1998 और 1999 से 2001 तक सांसद रही. फूलन देवी की हत्या के बाद मुलायम सिंह यादव ने फिर मिर्जापुर -भदोही लोकसभा क्षेत्र से रामरति बिंद को चुनावी मैदान में उतारा और उनकी नीति सफल रही रामरति बिंद यहां से उपचुनाव में सांसद चुने गए और फूलन देवी के बाकि बचे कार्यकाल 2002 से 2004 तक सांसद रहे.
भारत निर्वाचन आयोग ने 2008 में भदोही को मिर्जापुर से अलग कर स्वतंत्र लोकसभा क्षेत्र बना दिया. परिसीमन के बाद मिर्जापुर अलग हो गया जबकि प्रयागराज की हड़िया और प्रतापपुर विधानसभा को भदोही में शामिल कर लिया गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर बिंद जाति पर भरोसा जताते हुए मिर्जापुर के रमेश बिंद को चुनावी मैदान में उतार दिया. रमेश बिंद की नैया पार हो गई और वह मोदी लहर और जाति के भरोसे सांसद बन गए. अब आगामी लोकसभा 2024 में भाजपा ने एक बार फिर बिंद जाति के उम्मीदवार को ही चुनावी मैदान में उतारा है.
क्योंकि अब तक चाहे समाजवादी पार्टी रही हो या भारतीय जनता पार्टी बिंद पर लगाया गया दाँव पूरी तरह से सफल रहा है. समाजवादी पार्टी से जहां फूलन देवी और रामरति बिंद चुनाव जीते. वहीं भारतीय जनता पार्टी से रमेश बिंद चुनाव जीत कर साबित कर दिया कि भदोही लोकसभा क्षेत्र में बिंद, मल्ला और निषाद जाति का अपना अलग दबदबा है. भाजपा एक बार फिर चुनाव मैदान में रमेश बिंद का टिकट काटकर बिंद जाति को खुश करने के लिए डॉ विनोद बिंद को चुनावी मैदान में उतारा है. अब लोहा से लोहा काटने की सियासी नीति कितनी कारगर साबित होगी यह आने वाला वक्त बताएगा.